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बैंक लोन चाहिए, तो पहले ये रिपोर्ट बनवाइए।

woman's hand holding a magnifying glass over business graph

जब भी आप बैंक के पास लोन लेने के लिए जाते हैं तो इस लोन के प्रोसेस में आपको बहुत सारे डॉक्यूमेंट्स के ज़रूरत पड़ती है। लेकिन एक खास डॉक्यूमेंट रिपोर्ट होती है जो आपको बैंक के पास जमा करनी ही होती है अगर आप बिजनेस के लिए लोन रहे हैं। क्या है ये रिपोर्ट, इसे कैसे बनाया जाता है और इसकी क्या इम्पोर्टेंस होती है चलिए जानते हैं।  

क्या है खास रिपोर्ट – 

बैंक में लोन की अर्ज़ी देते समय आपको अपने बारे में और अपनी कम्पनी के बारे में सारे लीगल डॉक्यूमेंट्स जमा करवाने होते हैं। जिसमें आपकी पहचान से लेकर आपकी इनकम तक के सभी दस्तावेज़ शामिल होते हैं। लेकिन खास रिपोर्ट भी आपको इन डॉक्यूमेंट्स के साथ जमा करवानी होती है वो है सीएमएस (CMA) यानि कि Credit Monitoring Arrangement Report, इस रिपोर्ट में आप बैंक को ये साफ़ साफ़ बताते हैं कि आपको ये लोन किस तरह से चाहिए।    

क्या होता है सीएमए रिपोर्ट में – 

सीएमए रिपोर्ट में आपकी कम्पनी के बारे में सबकुछ फाइनेंशियल टर्म्स में लिखा जाता है, इसमें कपनी के पिछले परफॉर्मेंस के आंकड़े लिखे होते हैं। साथ ही ये रिपोर्ट बैंक को बताती है कि आपकी कम्पनी का रिवेन्यू क्या रहा है, आने वाले अगले साल में कम्पनी का रिवेन्यू क्या होगा। कम्पनी में कितना पैसा हर साल खर्च होता है। और अब जो लोन कम्पनी बैंक से लेना चाहती है वो उस पैसे का इस्तेमाल कहाँ और किस तरीके से करेगी। लोन का पैसा इन्वेस्ट होने के बाद कम्पनी को क्या और कितना फायदा होगा, साथ ही इस रिपोर्ट में ये भी बताया जाता है कि कम्पनी बैंक से लिया हुआ ये लोन इंट्रेस्ट के साथ समय से कैसे चुकायेगी।  

 इस सीएमए डेटा को देखने के बाद ही बैंक के ऑफिशियल्स इस बात का फैसला करते हैं कि उन्हें ये लोन देना है या नहीं। अगर ये लोन देना भी है तो उसपर कितना इंट्रेस्ट होगा, और लोन के बदले क्या और कितनी सिक्योरिटी बैंक अपने पास रखेगा। इस रिपोर्ट के बिना आप लोन ले ही नहीं सकते क्योंकि रिज़र्व बैंक ऑफ़ इंडिया ने इसे लोन से पहले बैंक को ये रिपोर्ट देना कम्पल्सरी कर दिया है। इसका मतलब अगर आपके पास सीएमए रिपोर्ट नहीं है तो कोई बैंक आपसे लोन के बारे में बात भी नहीं करेगा।  

कोई भी कम्पनी चाहे 5 करोड़ का लोन ले रही हो या फिर 500 करोड़ का उन्हें ये सीएमए रिपोर्ट बनानी ही पड़ती है। कुछ बड़ी कम्पनीज के लिए तो एक नियम ये भी बनाया गया है कि उन्हें इस रिपोर्ट के साथ अपनी कम्पनी की रेटिंग भी बतानी होती है। CRISIL, CARE और ICRA limited जैसी कुछ एजेंसीज हैं जो कम्पनीज को रेटिंग देने का काम करती हैं। जब आप बैंक के पास लोन का प्रपोज़ल लेकर जाते हैं तो उससे पहले ही ये कम्पनीज आपको बता देती हैं कि आपके प्रपोजल में कितना दम है।  

कुल मिलाकर ये रिपोर्ट बैंक को आपकी कम्पनी की पूरी फाइनेंशियल कंडीशन के बारे में बता देती है। इसी को देखकर बैंक इस बायत का फैसला करता है कि ये लोन देना उनके लिए फायदे का सौदा है या फिर नुक्सान का। 

 

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