इकॉनमी एंड फाइनेंस

ऑडिट के समय इकट्ठे किए गए सबूत किस काम आते हैं?

आपने अक्सर फिल्मों में देखा होगा कि अपनी बात को साबित करने के लिए हमेशा सबूतों की जरूरत पड़ती है, सबूत छोटा हो या बड़ा अपनी बात को साबित करने के लिए काफी होता है। ऐसे ही कुछ बिजनेस ऑडिट के समय पर ऑडिटर भी इकट्ठे करता है जिन्हें “ऑडिट एविडेंस” कहा जाता है, अब ये क्या होते हैं क्यों इन्हें इकट्ठा करना जरूरी होता है चलिए जानते हैं। 

क्या होता है “ऑडिट एविडेंस”(Audit Evidence)

एक ऑडिटर ऑडिट रिपोर्ट को तैयार करने के लिए वो जिस भी जानकारी, डेटा, डॉक्यूमेंट्स और रिपोर्ट्स का इस्तेमाल करता है उन्हें ऑडिट एविडेंस कहा जाता है। एक अच्छी और मजबूत ऑडिट रिपोर्ट बनाने के लिए एक ऑडिटर को ऑडिट के दौरान इस तरह के एविडेंस इकट्ठे करने होते हैं ताकि बाद में उसकी रिपोर्ट पर किसी तरह का कोई स्वाल खड़ा ना हो सके। 

ऑडिटर ऑडिट के हर एक स्तर पर अलग अलग सबूत इकट्ठे करता है, जैसे कंपनी के फाइनेंशियल अकाउंट्स, बैंक स्टेटमेंट्स, फिक्स्ड असेट्स रजिस्टर, एम्प्लॉय सेलरी डिटेल्स, लोन सेंक्शन डॉक्यूमेंट्स और सेल परचेज के बिल्स को ऑडिट एविडेंस की तरह इस्तेमाल किया जाता है। 

कितने तरह के होते हैं ऑडिट एविडेंस?

एक्सटर्नल सोर्स (External Source)

ऑडिट के समय ऑडिटर कंपनी के बाहर से जो भी एविडेंस इक्कठे करता है उन्हें एक्सटर्नल सोर्स कहा जाता है। इसमें कंपनी के कस्टमर्स से बिल की असली कॉपी लेकर आना, बैंक से ओरिजिनल स्टेटमेंट्स मंगवाना। 

रिटिन फॉर्म (Written Form)

वैसे तो बिजनेस की बहुत सी डील्स को बातों ही बातों में कर लिया जाता है, लेकिन जिन डील्स को डॉक्यूमेंट्स और एग्रीमेंट पर कानूनी तौर से किया जाता है उसे ही रिटीन फॉर्म एवीडेंस कहा जाता है और वही ऑडिट के लिए मान्य भी होते हैं। 

प्रिपेयर्ड बाय ऑडिटर (Prepared By Auditor)

ऑडिट के दौरान कुछ सबूत ऐसे भी होते हैं जो ऑडिटर खुद से भी तैयार करता है, जैसे बैंक रिकॉन्सिलिएशन (Bank Reconciliation) रिपोर्ट, इसे सिर्फ एक प्रोफेशनल ऑडिटर ही बना सकता है। 

प्रिपेयर्ड बाय क्लाइंट्स (Prepared By Clients)

इसमें वो एविडेंस शामिल किए जानते हैं जो कि कंपनी का मालिक खुद ऑडिटर को ऑडिट के लिए देता है, जैसे कम्पनी के फाइनेंशियल रिकॉर्ड्स। 

ऑडिटर कैसे इक्कठा करता है ऑडिट एविडेंस?

ऑडिट इंक्वायरी (Audit Enquiry) 

अगर ऑडिट के दौरान ऑडिटर को आपकी कंपनी के कोई अकाउंट्स डिटेल्स समझ नहीं आ रहे हैं या फिर उसमें किसी तरह की गड़बड़ उसे दिखाई दे रही होती है तो वो कंपनी के मैनेजमेंट से सीधे सीधे इंक्वायरी करता है। 

ऑडिट ऑब्जर्वेशन (Audit Observation)

इसमें ऑडिटर अपने अनुभव के आधार पर आपकी कंपनी की एक्टिविटीज को ऑब्जर्व करता है और इस दौरान अगर उसे कोई गड़बड़ नजर आती है तो उसे सुधारने के लिए वो सुझाव भी देता है। इस ऑब्जर्वेशन को वो अपनी ऑडिट रिपोर्ट में एविडेंस की तरह इस्तेमाल भी कर सकता है। 

ऑडिट इंस्पेक्शन (Audit Inspection) 

ऑडिटर कंपनी के फाइनेंशियल डॉक्यूमेंट्स की जांच भी कर सकता है ताकि वो पता लगा सके की सारे पेपर्स सही तरह से हैं या नहीं। इसके लिए वो एक्सटर्नल सोर्सेज की मदद ले सकता है। 

रिकैलकुलेशन (Recalculation)

ऑडिटर आपकी कंपनी के ट्रांजैक्शंस की रिकैलकुलेशन भी कर सकता है जिससे वो आपकी कंपनी में हुई अकाउंट कैकुलेशन की कमियों को पता करता है। 

क्या होती है ट्रू एंड फेयर रिपोर्ट? (True & Fair Report) 

अपनी ऑडिट रिपोर्ट को फाइनल करते समय ऑडिटर इस “ट्रु एंड फेयर” टर्म का इस्तेमाल करता है, जिसमें वो ये बताता है कि कंपनी के सभी डेटा को पूरे ध्यान से जांचकर सच्चाई के साथ ऑडिट रिपोर्ट को बनाया गया है और उसमें सभी तरह के नियमों का पालन भी किया गया है। ऑडिटर अगर अपनी रिपोर्ट में किसी कंपनी के लिए जब इस टर्म का इस्तेमाल कर देता है तो मतलब अब उस कंपनी के अकाउंट्स सभी एरर्स और फ्रॉड से मुक्त है। 

 

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