इकॉनमी एंड फाइनेंस

ऑडिट रिपोर्ट की “वाउचिंग” और “वेरिफिकेशन” कैसे की जाती है? 

जब भी कोई बिजनेस किया जाता है तो उसकी अकाउंटिंग में कुछ गलतियां होना लाजमी है, लेकिन जो गलतियां जानबूझकर की जाती है उन्हें धोखाधड़ी कहा जाता है। लेकिन बिजनेस की इस धोखाधड़ी को एक ऑडिटर बड़ी हो आसानी से पकड़ लेता है। 

कोई भी ऑडिटर वाउचिंग और वेरिफिकेशन के जरिए होने फ्रॉड को पकड़ता है, लेकिन ये दोनों क्या हैं और किस तरह से काम करते हैं ये भी समझ लेते हैं। 

वाउचिंग (Vouching)

वाउचर्स वो प्राइमरी डॉक्यूमेंट्स होते हैं जिनके जरिए कंपनी के ट्रांजैक्शंस का रिकॉर्ड रखा जाता है। जैसे की परचेज बिल, सेल इनवॉइस, बैंक रिसिप्ट और कैशबुक। जब भी कोई ऑडिटर इन वाउचर्स को चेक करता है तो वो ये देखता है कि उनपर लिखी गई तारीख सही है या नहीं और वो करंट फाइनेंशियल ईयर की है या उसमें कोई बदलाव किए गए हैं। 

वाउचर को सही क्लाइंट के नाम पर सही अमाउंट के साथ बनाया गया है या नहीं, इसके अलावा वो वाउचर पर कंपनी की सील या किसी ऑथराइज्ड पर्सन के साइन भी होने चाहिए। बाद मे अगर कोई बदलाव भी किए गए हैं तो उन्हें दोबारा से अप्रूव करना भी जरूरी होता है। अगर ये सभी चीजें सही ढंग से नहीं हैं तो मतलब कुछ गड़बड़ है।

कैसे की जाती है वाउचिंग?

वाउचिंग को कंपनी की कई तरह की चीज़ों के लिए किया जाता है जैसे कि ट्रेवलिंग एक्सपेंस। ट्रेवलिंग एक्सपेंस में सबसे ज्यादा फ्रॉड देखने को मिलता है इसलिए ऑडिटर कुछ खास प्वाइंट्स को चेक करता है। 

कंपनी में ट्रेवलिंग को लेकर पहले से कोई नियम बनाए गए हैं या नहीं। कहीं एम्प्लॉय ने ट्रिप के दौरान अपने पर्सनल खर्चे के बिल तो कंपनी के एक्सपेंस में नहीं जोड़ दिए हैं। हो सकता है एम्प्लॉय को ट्रिप के लिए कुछ एडवांस भी दिया गया हो, तो क्या ट्रिप के बाद उस एडवांस को एडजस्ट किया भी गया है या नहीं। इन सभी चीजों के लिए इश्यू किए गए वाउचर्स को एक्सपेंस से टैली करके देखा जाता है। 

वेरिफिकेशन (Verification)

वाउचिंग के बाद आता है वेरिफिकेशन, वेरिफिकेशन ऑडिट प्रोसेस का एक बहुत ही जरूरी हिस्सा होता है। इसमें ऑडिटर कंपनी के सभी असेट्स का वेरिफिकेशन करके ये तय करता है कि कंपनी ने अपने बिजनेस के जिन असेट्स को पेपर्स में दिखा रही है वो असल में मौजूद हैं भी या नहीं।

कई बार ऐसा भी होता है कि असेट्स को बिजनेस के नाम पर खरीद कर पर्सनल इस्तेमाल में लाया जाता है, इसीलिए ऑडिटर एक एक असेट को पर्सनली चेक भी करता है। ये भी देखा जाता है कि असेट्स कंपनी के नाम पर रजिस्टर है या नहीं, साथ ही ये भी पता किया जाता है उन असेट्स को गिरवी रखकर कोई उधार या लोन तो नही लिया गया है। 

तो इस तरह से वाउचिंग और वेरिफिकेशन का प्रोसेस किया जाता है जिनकी बदौलत कंपनी में हो रही सारी कमियां सामने आ जाती हैं और एक परफेक्ट ऑडिट रिपोर्ट बनाकर तैयार होती है। 

 

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