इकॉनमी एंड फाइनेंस

एक परफेक्ट ऑडिट रिपोर्ट बनाने के लिए क्या प्रोसेस अपनाए जाते हैं?

किसी भी बिजनेस के लिए हर साल अपनी ऑडिट रिपोर्ट बनानी जरूरी होती है, लेकिन इस ऑडिट रिपोर्ट को बनाने के लिए क्या प्रोसेस अपनाए जाते है। ऑडिटर और कंपनी मैनेजमेंट किस तरह से इसके लिए काम करते हैं ये प्रोसेस बड़ा ही खास होता है। 

ऑडिट शुरू होने से पहले का प्रोसेस?

अपने बिजनेस के ऑडिट के लिए सबसे पहले तो कंपनी किसी एक प्रोफेशनल ऑडिटर को हायर करती है। इसके बाद भी कंपनी और ऑडिटर के बीच में कई तरह के सवाल रह जाते हैं, जैसे ऑडिट का स्कोप क्या होगा, ऑडिट कितने टाइम में पूरा करना है, आपके बिजनेस पर किस तरह का ऑडिट अप्लाई होगा। इसके अलावा ऑडिट के समय ऑडिटर की और कंपनी मैनेजमेंट की क्या क्या जिम्मेदारियां होंगी और ऑडिटर की फीस क्या होगी? 

ऑडिट एंगेजमेंट लेटर (Audit Engagement letter)

अब ऑडिटर और कंपनी मैनेजमेंट के बीच में जो भी सवाल होते हैं उन्हें ऑडिट शुरू करने से पहले क्लेयर करना बहुत जरूरी होता है। इसीलिए ये सभी कांसेप्ट क्लेयर करने के कंपनी एक ऑडिट एंगेजमेंट लेटर बनाकर ऑडिटर को भेजती है। अब अगर इस लेटर में कुछ ऐसे टर्म्स को लिखा गया है जिनसे ऑडिटर सहमत नहीं है, या फिर अगर कंपनी उसपर अपने हिसाब से काम करने का दबाव डाल रही है तो ऑडिटर के पास ये मौका होता है कि वो इस ऑडिट को करने से मना कर सकता है। 

ऑडिट करने के तरीके क्या होते हैं?

एक बार जब कंपनी मैनेजमेंट और ऑडिटर आपस में सारे कंफ्यूजन क्लेयर कर लेते हैं तो उसके बाद फिर ऑडिट को शुरू किया जाता है। एक अच्छी ऑडिट रिपोर्ट बनाने के लिए ऑडिटर अपने हिसाब से कुछ तरीके भी अपनाता है जैसे

हर दिन ऑडिट शुरू करने से वो ये तय करता है कि आज उसे दिन खत्म होने से पहले बिजनेस का कितना और कौन हिस्सा कवर करना है। फिर दिन के अंत में वो ये वेरिफाई भी करता है कि क्या उसने तय किया हुआ काम पूरा किया भी है या नहीं। 

बिजनेस के जो भी हिस्से ऑडिट में कवर होते जाते हैं, या फिर जो वाउचर्स ऑडिट हो जाते है उन्हें ऑडिटर अपनी सील के जरिए टिकमार्क कर देता है ताकि आगे कोई कंफ्यूजन ना हो।

जो भी काम ऑडिटर करता है उसे बीच बीच में एंगेजमेंट लेटर से क्रॉस चेक भी करता है, ताकि ये पता चल सके कि सारे काम उसी हिसाब से हो रहे हैं या नहीं। 

ऑडिटर अपनाते हैं कुछ खास टेक्निक्स 

पोस्टिंग चेकिंग (Posting Checking)

पोस्टिंग चेकिंग में ऑडिटर ये वेरिफाई करता है कि कंपनी के सभी ट्रांजैक्शंस और फाइनेंशियल एंट्रीज को सही तरीके से किया गया है या नहीं। 

फिजिकल एग्जामिनेशन एंड काउंट (Physical Examination & Count)

इसमें ऑडिटर आपकी कंपनी के असेट्स और इन्वेंटरी को खुद जाकर चेक करता है और देखता है कि जो चीजें कागजों में लिखी गई हैं वो असल में मौजूद हैं भी या नहीं।

कन्फर्मेशन (Confirmation)

ऑडिटर कई बार कंपनी ये इस बात को भी कन्फर्म करता है कि क्या उन्होंने कंपनी में अकाउंटिंग और फ्रॉड को रोकने के लिए जरूरी कदम उठाए हैं या नहीं।

इनक्वायरी (Inquiry)

अगर ऑडिटर को कंपनी के किसी भी ट्रांजेक्शन में कोई गड़बड़ महसूस होती है तो वो उससे जुड़े सभी एम्प्लॉय, बैंक्स और कंपनी के मालिक से इनक्वायरी करके सच का पता लगा सकता है। 

रिकॉम्पुटेशन (Recomputation)

इसमें ऑडिटर कुछ सैंपल अकाउंट्स को सेलेक्ट करके उसमें होने वाले सभी ट्रांजैक्शंस को वेरिफाई करता है, ताकि उस अकाउंट में दिए गए नंबर्स की सही जानकारी पता कर सके।

तो ये हैं कुछ तरीके जिनके जरिए एक ऑडिटर कंपनी मैनेजमेंट के साथ मिलकर एक परफेक्ट ऑडिट रिपोर्ट बनाने के लिए काम करता है। 

Related posts

कैसे सही “एफिशिएंसी रेशियो” बदल सकता है आपकी कंपनी की किस्मत? 

Sandhya Yaduvanshi

बिजनेस के नेगेटिव रिव्यूज को सोशल मीडिया से कैसे हटाएं?

जानिए कैसे “कंज्यूमर बिहेवियर” ही तय करता है आपके प्रोडक्ट का भविष्य?

Sandhya Yaduvanshi

Leave a Comment