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जानिए कैसे “कंज्यूमर बिहेवियर” ही तय करता है आपके प्रोडक्ट का भविष्य?

अगर आप भी बिजनेस करते हैं, या फिर कोई स्टार्टअप शुरू करने की सोच रहे हैं तो अपना प्रोडक्ट बनाने से भी पहले आपको ये तय करना होगा कि आपके होने वाले कंज्यूमर का बिहेवियर क्या है। अब अगर आप नहीं जानते कंज्यूमर बिहेवियर क्या है, किस तरह से आपके प्रोडक्ट को बनाने में मदद करता है तो जानते हैं।

पल्स पोलियो अभियान है कंज्यूमर बिहेवियर का बड़ा उदाहरण

भारत में हुआ पल्स पोलियो अभियान कंज्यूमर बिहेवियर का एक बहुत बड़ा और अच्छा उदाहरण हैं। डबल्यू एच ओ पांच साल तक लगातार अमिताभ बच्चन के साथ मिलकर इस अभियान का प्रचार करता रहा। जिसमें अमिताभ बच्चन सालों तक हाथ जोड़कर लोगों से कहते थे कि पोलियो बूथ पर आकर अपने बच्चों को दवाई पिलाइए, उन्हें पोलियो से बचाइए। लेकिन उनके इस निवेदन का पांच साल तक कोई नतीजा नहीं निकला कोई भी घर से निकल कर बूथ तक नही गया। 

पांच साल की असफलता के बाद भी डबल्यू एच ओ ने अमिताभ बच्चन पर अपना भरोसा बनाए रखा और ये पता लगाने की कोशिश की कि उनसे आखिरकार गलती कहां हो रही है। जिसके बाद उन्होंने भारत के छोटे से छोटे गांव, तहसील और तालुका में अपने लोगों को रिसर्च के लिए भेजा और समझा कि गलती कहां हो रही है। तब पता चला कि उनका विज्ञापन कंज्यूमर के बिहेवियर के हिसाब से सही नहीं है। 

प्रोडक्ट खरीदने के पीछे होते हैं ये पांच फैक्टर्स 

जब भी व्यक्ति किसी चीज को खरीदता है तो उसके पीछे पांच फैक्टर्स होते हैं। पहला होता है “इनिशिएटर”(Initiator) यानि कि वो व्यक्ति जो उस प्रोडक्ट को लेने की बात शुरू करता था। दूसरे नंबर पर आता है “इनफ्लूएंसर”(Influencer) जो आपको ये भरोसा दिलाता है कि आप जो प्रोडक्ट लेना चाहते हैं आपके लिए एकदम सही है। तीसरा होता है “डिसाइडर”(Decider) जिसके पास ये पॉवर होती है कि प्रोडक्ट लेना है या नहीं। चौथा है “बायर”(Buyer) जो जाकर प्रोडक्ट खरीदता है। पांचवा है “कंज्यूमर” जो उस प्रोडक्ट को इस्तेमाल करता है।

अमिताभ बच्चन के पल्स पोलियो अभियान में कंज्यूमर 0 से 5 के बच्चे थे जिनके हाथ में कुछ नहीं था, उस बच्चे की मां की उम्र 25 साल थी लेकिन बच्चे को पोलियो की दवा पिलानी है या नहीं ये फैसला बच्चे के दादा और दादी के हाथ में थी। जो कि ये कहा करते थे कि उनके बच्चे को जब पोलियो है ही नहीं तो वो पोलियो क्यों पिलाए यानि की वो यहां पर इन्फ्लूएंसर और  डिसाइडर का रोल प्ले कर रहे थे। जिसके ऊपर अमिताभ बच्चन की टीम ने काम नहीं किया था।

आखिर में काम आया एंग्री यंग मैन का गुस्सा 

बच्चे के इन बूढ़े दादा दादी ने अमिताभ बच्चन को अपने जमाने में हमेशा एंग्री यंग मैन की तरह देखा था इसीलिए उनकी हाथ जोड़कर प्रार्थना करने वाली छवि से वो जुड़ाव महसूस नहीं कर पा रहे थे। जब ये बात एड कैंपेन करने वालों को समझ आई कि कंज्यूमर बिहेवियर क्या है तो उन्होंने अमिताभ बच्चन की एड में छवि को बदल दिया। जिसके बाद अमिताभ बच्चन हाथ जोड़कर लोगों से प्रार्थना करने की बजाय अब उन पर गुस्सा करते नज़र आते थे। 

उनके इस व्यवहार से वो बूढ़े लोग अब जाकर कनेक्ट करने लगे,उन्हें एहसास हुआ कि बच्चन साहब अगर नाराज़ हैं तो सच में दवाई पिलाना जरूरी है। नतीजा ये हुआ कि सभी लोग अपने बच्चों को लेकर पोलियो बूथ जाने लगे।इसीलिए प्रोडक्ट को मार्केट में उतारने से पहले इस बात को ज़रूर समझ ले कि आपके कंज्यूमर का बिहेवियर क्या है ताकि आप आसानी से उन्हें अपने प्रोडक्ट के बारे में बता सकें।

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