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कंपनी में “इंटर्नल ऑडिट” करवाने से क्या फायदे होते है?

किसी भी बिजनेस या कंपनी के काम किस तरह से चल रहे हैं, उनमें क्या कमियां है, किस तरह की परेशानियां हैं ये जानने के लिए कई तरह के ऑडिट किए जाते हैं। इन्हीं में से एक है इंटर्नल ऑडिट। इंटर्नल ऑडिट क्या है किस तरह से इसे किया जाता है और क्या इसके फायदे हैं चलिए जानते हैं। 

क्या होता है “इंटर्नल ऑडिट”(Internal Audit)

इंटर्नल ऑडिट में कंपनी के इंटर्नल कंट्रोल्स को चेक किया जाता है, कंपनी किस तरह से काम कर रही है, वो सरकारी नियमों का पालन कर रही है या नहीं इन सभी बातों का खास तौर पर ध्यान रखा जाता है। इस ऑडिट ने देखा जाता है कि कंपनी में सिक्योरिटी सिस्टम कैसा है, सीसीटीवी कैमरा काम करते हैं या नहीं। एंप्लॉयज के लिए अटैंडेंस सिस्टम सही से काम करता है या नहीं और एम्प्लॉय के काम को उसके सीनियर ठीक से चेक करते हैं या नहीं।

इंटर्नल ऑडिट करवाने के क्या उद्देश्य होते हैं?

1.इंटर्नल ऑडिट के जरिए पता लगाया जाता है कि कंपनी के अंदर जो भी ट्रांजेक्शन हो रहे हैं वो मैनेजमेंट की परमीशन से हो रहे हैं या नहीं।

2. सारी की सारी ट्रांजैक्शंस सही अमाउंट में और सही अकाउंट में हो इसके लिए इंटर्नल ऑडिट करना जरूरी है, ताकि कंपनी की फाइनेंशियल रिपोर्ट एकदम मैनेज रहे।

3. इंटर्नल ऑडिट का एक उद्देश्य ये भी होता है कि कंपनी के असेट्स को कोई ऐसा व्यक्ति इस्तेमाल ना करे जिसे उसके इस्तेमाल की इजाजत ना हो। 

4. इंटर्नल ऑडिट के दौरान कंपनी के असेट्स को भी चेक किया जाता है, ताकि ये पता चल सके कि कहीं उनमें किसी तरह का कोई नुकसान तो नही हुआ, अगर हुआ है तो उसके लिए सही एक्शन लिए गए हैं या नहीं। 

क्या आपकी कंपनी को इंटर्नल ऑडिट करवाना ज़रूरी है?

हर वो कंपनी जो स्टॉक मार्केट में लिस्टेड है उसे इंटरनल ऑडिट करवाना ज़रूरी होता है, इसके अलावा हर एक अनलिस्टेड कंपनी जिसकी पेड अप कैपिटल पचास करोड़ से ज्यादा है, टर्नओवर 200 करोड़ से ज्यादा है उसे भी इंटर्नल ऑडिट करवाना पड़ता है। वहीं अगर किसी प्राइवेट कंपनी का टर्नओवर 200 करोड़ से ज्यादा है तो उन्हें भी इंटर्नल ऑडिट करवाना ज़रूरी होता है। इन सबके अलावा आप अपनी मर्जी से भी इंटर्नल ऑडिट को करवा सकते हैं। 

इंटर्नल ऑडिट को करवाने के लिए आप किसी चार्टर्ड अकाउंटेंट को, कॉस्ट अकाउंटेंट को या फिर किसी भी ऐसे प्रोफेशनल को हायर कर सकते है जिसे सरकार की तरफ से इस काम को करने का अधिकार दिया गया हो। 

इंटर्नल ऑडिट को करवाने का मकसद यही होता है कि कंपनी में हो रही सभी एक्टिविटीज पर नजर रखी जा सके, कंपनी में कहां फ्रॉड हो रहे हैं कहां गलतियां हो रही हैं उन्हें समय रहते पकड़ा जा सके। ताकि कंपनी को आने वाले समय में किसी परेशानी का सामना ना करना पड़े और नियम उल्लंघन की वजह से किसी कानूनी कार्यवाही न गुजरना पड़े। 

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