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जानिए बिजनेस में “स्टैटयूटरी ऑडिट” क्या होता है?

आपके बिजनेस में हो रही सभी तरह की फाइनेंशियल एक्टिविटीज पर नजर रखने सरकार कई तरह के ऑडिट रिपोर्ट हर साल आपसे मांगती है। इन्हीं में से एक ऑडिट होती है “स्टैटयूटरी ऑडिट”, इस ऑडिट को करवाना क्यों जरूरी होता है, इसका क्या फायदा नुकसान है चलिए जानते है। 

क्या है स्टैटयूटरी ऑडिट (Statutory Audit)?

स्टैटयूटरी ऑडिट का मतलब होता है एक ऑडिटर से आपके बिजनेस का इंडीपेंडेंट ऑडिट करवाना। स्टैटयूटरी ऑडिट ये जानने के लिए करवाया जाता है कि आप अपने बिजनेस की फाइनेंशियल कंडीशन सही सही दिखा रहे हैं या नहीं। अगर आप एक कंपनी के तौर पर बिजनेस करते हैं तो कंपनी रजिस्टर करवाने के बाद 30 दिन के अंदर आपको एक ऑडिटर अपनी कंपनी के लिए हायर करना होता है। आपका चार्टर्ड अकाउंटेंट भी आपका ऑडिटर हो सकता है जिसे सरकार के बताए फॉर्मेट के हिसाब से ही ऑडिट रिपोर्ट को जमा करवाना होता है। 

क्या आपको “स्टैटयूटरी ऑडिट” करवाने की जरूरत है?

स्टैटयूटरी ऑडिट को करवाने के लिए आपकी कंपनी को कुछ खास कंडीशन पूरी करनी होती हैं जैसे

1.अगर आप “लिमिटेड लाइबिलिटी पार्टनरशिप”(LLP) के तौर पर काम करते हैं और आपकी कंपनी का सालाना टर्नओवर चालीस लाख से ज्यादा है तो आपको स्टैटयूटरी ऑडिट करवाना पड़ेगा 

2. इसके अलावा अगर आप एक प्राइवेट लिमिटेड कंपनी या फिर पब्लिक लिमिटेड कंपनी के तौर पर काम करते हैं तो फिर चाहे आपकी कंपनी का टर्नओवर कितना भी हो आपको स्टैटयूटरी ऑडिट करवाना ही होगा। 

कैसे किया जाता है “स्टैटयूटरी ऑडिट”?

आपके बिजनेस के स्टैटयूटरी ऑडिट को करने के लिए एक ऑडिटर को सबसे पहले आपके बिजनेस का एनवायरमेंट समझना होता है। जैसे आपके बिजनेस का सिस्टम किस तरह काम करता है और आपकी कंपनी किन वैल्यूज को मानती है। 

कंपनी के एम्प्लॉय कंपनी के बारे में क्या सोचते हैं, सरकार के बनाए कौन से नियम आपके बिजनेस पर लागू होते है। मार्केट में आपका कॉम्पिटिशन कौन है, और आपका बिजनेस देश की इकोनॉमी के हिसाब से किस तरह परफॉर्म कर रहा है।

एक ऑडिटर इस बात को भी चेक करता है कि आपकी कंपनी में किस तरह के इंटरनल कंट्रोल आपने लगाए हुए है, वो किस तरह से काम करते हैं इस बात को ऑडिटर खुद पर्सनल लेवल पर चेक करता है। 

ऑडिट करते समय बैलेंस शीट को चेक करना सबसे जरूरी काम होता है, इसमें आपके बिजनेस के सभी असेट्स और लाइबिलिटी को लिखा जाता है। बैलेंस शीट में आपकी कंपनी की पूरी फाइनेंशियल कंडीशन साफ साफ लिखी है या नहीं ऑडिटर इसी बात को देखता है। 

बिजनेस के प्रॉफिट एंड लॉस अकाउंट पर ऑडिटर की खास नजर रहती है, जिसमें ऑडिटर देखता है कि आपकी कंपनी का प्रॉफिट पिछले साल के मुकाबले बढ़ा है या नहीं। अगर कोई बदलाव हुआ है तो वो क्यों हुआ है। 

स्टैटयूटरी ऑडिट ना करवाने पर क्या होता है?

अगर स्टैटयूटरी ऑडिट करवाने की कंडीशंस आपके बिजनेस पर लागू होती है तो फिर आपको ये रिपोर्ट सही समय पर “रजिस्ट्रार और कंपनीज” को जमा करवानी होती है, लेकिन अगर आप ऐसा नहीं करते तो उसका आपका काफी बड़ा खामियाजा भी चुकाना पड़ता है। 

रिपोर्ट जमा ना करवाने पर कंपनी को भारी जुर्माना देना पड़ता है, तय की गई तारीख पर अगर आपकी रिपोर्ट जमा नहीं होती है तो फिर आपको हर दिन 1000 रुपए पेनल्टी के तौर पर देने होते हैं। इस पेनल्टी के तौर पर आपको मैक्सिमम दस लाख रुपए तक देने पड़ सकते हैं। 

तो ये थी स्टैटयूटरी ऑडिट से जुड़ी कुछ खास बातें जो एक बिजनेसमैन के तौर पर आपको पता होनी चाहिए ताकि आपको भारी पेनल्टी ना चुकानी पड़ें। 

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